नईदिल्ली ; सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रकाशन विभाग के लिए नई कारोबारी नीति तैयार की है जिसका उद्देश्य प्रकाशन उद्योग में प्रचलित समकालीन प्रवृत्तियों के अनुरूप कारोबारी प्रथाओं को सुव्यवस्थित करना है|इस नीति की खास बात यह है कि मुद्रित संस्करण की कीमत की ७५ फीसदी दर पर प्रकाशन के डिजिटल संस्करण का मूल्य निर्धारण करते हुए ऑनलाइन रीडरशिप को बढ़ावा देना है|इससे पाठकों को २५ फीसदी छूट देना सुनिश्चित होगा इस नीति के अंतर्गत प्रकाशन क्षेत्र में ई-कॉमर्स की बढ़ती संभावनाओं को स्वीकारते हुए यह नीति ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के जरिए इस प्रभाग की ई-पुस्तकों की बिक्री को बढ़ावा देती है| इस तरह के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के साथ विपणन संबंधी गठबंधन हो जाने से इसके प्रकाशनों की बेहतर दृश्यता और पहुंच सुनिश्चित होगी|उपर्युक्त नीति में इस बात का उल्लेख किया गया है कि पुस्तकों के डिजिटल संस्करण की ऑनलाइन बिक्री से अर्जित होने वाले राजस्व को प्रकाशन प्रभाग और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के बीच क्रमश: ७०/३० के अनुपात में बांटा जाएगा|नीति में इस बात का जिक्र किया गया है कि आगे किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए दो साल बाद ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के प्रदर्शन की समीक्षा भी की जाएगी| नीति में उत्पादन लागत और छूट को शामिल करते हुए बनाए गए एक सूत्र के आधार पर महत्वपूर्ण जर्नल,पत्रिकाओं के मूल्य निर्धारण की व्यवस्था को तर्कसंगत बनाया गया है|इस नीति की रूपरेखा छूट वाले स्लैबों, ऋण और विनिमय सुविधा के जरिए थोक खरीदारी करने वाले संस्थानों, एजेंटों एवं वितरकों जैसे महत्वपूर्ण हितधारकों की भागीदारी पर केंद्रित है| इस नीति में क्रमशः ऑर्डर की मौद्रिक सीमा और प्रतियों की संख्या के आधार पर पुस्तकों व पत्रिकाओं,रोजगार समाचार के लिए अलग-अलग छूट स्लैबों का उल्लेख किया गया है|प्रभाग के प्रकाशनों को बेचने में दिलचस्पी दिखाने वाले राष्ट्रस्तरीय पुस्तक प्रकाशन संगठनों जैसे कि नेशनल बुक ट्रस्ट को एजेंट के लिए तय ४५ फीसदी छूट के तहत कवर किया जाएगा|नीति में एजेंटों के लिए ऋण सुविधा की इजाजत दी गई है जो उनकी अग्रिम राशि के अनुपात में होगी,ऋण ६० दिनों के लिए दिया जाएगा जिसे उपयुक्त सवधि जमा की एवज में बढ़ाया जा सकता है|एजेंटों को विनिमय की सुविधा बिलिंग के ६० दिनों के भीतर दी जाएगी जो किसी एक वर्ष में खरीदे गए प्रकाशनों के सकल मूल्य के १० फीसदी तक के बराबर होगी|यह सुविधा एक कैलेंडर वर्ष में केवल दो बार ही प्रदान की जाएगी और विनिमय वार्षिक संदर्भ पुस्तक भारत के लिए लागू नहीं होगा यह नीति गत ३१ दिसंबर २०१५ से प्रभावी हो चुकी है|