वनों की कटाई और वनों के क्षरण से उत्सर्जन को कम करना आवश्यक : अरुण मिश्रा

दुबई : राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को कम करने और प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण कार्यक्रमों हेतु वनों की कटाई और वनों के क्षरण से उत्सर्जन को कम करने के लिए एक सुरक्षा सूचना प्रणाली का होना आवश्यक है|उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मानव अधिकारों पर बहुत बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ता है, ध्रुवीय बर्फ के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, बढ़ते सूखे, उच्च घनत्व वाली वर्षा, चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन और जंगल की आग से सबसे अधिक गरीबों को नुकसान होता है|न्यायमूर्ति मिश्रा ने दुबई में राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन (गनहरी) द्वारा आयोजित “जलवायु परिवर्तन और मानव अधिकार राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों की भूमिका” विषय पर एनएचआरआई सीओपी28 संगोष्ठी में “जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगों को सशक्त बनाना” विषय पर एक सत्र को संबोधित किया|उन्होंने कहा कि अन्य हितधारकों के अलावा, एनएचआरआई को पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करना होगा, जिसके परिणामस्वरूप आश्रय, आजीविका, शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों सहित मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है|सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) 2023 से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ऊर्जा संसाधनों में सावधानीपूर्वक परिवर्तन करने की आवश्यकता है, अन्यथा, ऊर्जा उद्योग से धन की हानि “आंतरिक, क्षेत्रीय और यहां तक कि अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर” अस्थिरता का कारण बन सकती है| अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट में उल्‍लेख किया गया है कि जी-20 देशों में लगभग एक तिहाई नौकरियां प्रभावी पर्यावरण प्रबंधन और स्थिरता पर निर्भर करती हैं|न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि युद्ध के अलावा,जलवायु परिवर्तन प्रवासन के प्रमुख कारणों में से एक है,मानवता के अस्तित्व के लिए जलवायु लचीले बुनियादी ढांचे में परिवर्तन और शमन उपाय आवश्यक हैं| वायु एवं जल प्रदूषण मानव जीवन काल को कम कर रहा है, उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर निर्माण के कारण लुप्त हो रहे जलस्रोत, घटता जल स्तर और दूषित भूजल भी गंभीर चिंता का विषय हैं, गैस रिसाव जैसे औद्योगिक खतरे अब आम घटनाएँ बन गए हैं| प्लास्टिक ने पृथ्वी और समुद्रों पर पर्यावरण प्रदूषण को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया है जिससे जैव विविधता खतरे में पड़ गई है, कथित तौर पर समुद्र में प्लास्टिक का टुकड़ा फ्रांस के आकार से 20 गुना बड़ा है इसलिए, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की आवश्यकता है|न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि व्यवसाय को मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिए, भारत में कंपनी अधिनियम की धारा 135 में कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा को शामिल किया गया है, जिसमें बड़े व्यापारिक घरानों और उद्योगों को पर्यावरण और प्रभावित व्यक्तियों की रक्षा के लिए अपने शुद्ध लाभ का 2% खर्च करने की आवश्यकता है|न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि एनएचआरसी, भारत सक्रिय रूप से पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करता है और मुआवजे के भुगतान की सिफारिश करके न्याय सुनिश्चित करता है|आयोग द्वारा पर्यावरणीय क्षरण से संबंधित 8,916 मामलों पर शिकायतों के साथ-साथ स्वत: संज्ञान के आधार पर निर्णय लिया गया है| भूजल के प्रदूषण, जल निकायों की सुरक्षा और रिस्‍टोरेशन और पोर्टेबल पेयजल उपलब्ध कराने से संबंधित कई मामले आयोग द्वारा उठाए गए हैं और संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए गए हैं| सुरक्षा मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के माध्यम से कई प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया गया है|आयोग द्वारा पर्यावरण पर एक कोर ग्रुप का गठन किया गया है साथ ही आयोग जलवायु और पर्यावरण से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर रहा है|पर्यावरण प्रदूषण पर एक परामर्शी जारी की गई है जिसमें प्रदूषण करने वालों और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन करने वालों को शीघ्र दंडित करने, वाहनों के प्रदूषण को रोकने और कम करने और पर्यावरण के मुद्दों से निपटने के लिए स्थानीय निकायों को मजबूत करने और क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया है,हर जिले में पेड़ लगाने के लिए सभी राज्यों से अनुरोध किया गया है|आयोग देश में जीवन प्रत्याशा को प्रभावित करने वाले कथित उच्च वायु प्रदूषण और स्वस्थ जीवन और परिवेशीय वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रदूषण को कैसे कम किया जाए, इस पर केंद्र और राज्यों की स्वत: संज्ञान कार्यवाही में भी सुनवाई कर रहा है|एनएचआरसी भारत ने कहा कि नागरिकों को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए और अपनी दैनिक जीवन शैली के लिए पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण अपनाना चाहिए| समय आ गया है कि प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता को संरक्षित किया जाए, नष्ट हुए संसाधनों को बहाल किया जाए, अपशिष्ट, प्रदूषण एवं जीएचजी उत्सर्जन को कम किया जाए, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन लाया जाए, सर्वोत्तम प्रथाओं को दोहराया जाए और प्रत्‍यक्ष प्रभाव के लिए उन्हें क्षेत्र-विशिष्ट बनाया जाए|

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