राम का स्वरुपमाधुर्य

वास्तव में महात्मा तुलसीदास के विराट ब्यक्तित्व को सिधान्तों ,वादों और परिभाषाओं की सीमा में बांध लेना संभव नहीं है| उन्होंने वेद-शास्त्रों तथा अनेक ग्रंथों का गहन अध्ययन करने के अतिरिक्त अपने युग की समस्याओं और आवास्यक्ताओं को भलीभांति समझा था|उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आचार्य रामानुज और स्वामी रामानन्द की भक्तिवादी एवं समन्वयवादी परम्परा को पुनरुज्जीवित करके उसे पुष्पित एवं पल्लवित किया तथा उसे युगानुरूप नया रूप देकर जन-जन तक पहुँचाया |                                                                                                                                                       यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि विदेशी,विधर्मी शासकों द्वारा नवी-दसवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक हिन्दू जाति पर चतुर्दिक प्रहार किए गए,देव-मन्दिरों की पवित्रता नष्ट की गई तथा उनकी मर्यादाओं को ध्वस्त किया गया |ऐसे विकराल समय में सन १२९९ में प्रयाग में रामानन्द के रूप में एक दिब्य पुरुष अवतरित हुए जिन्होंने मर्यदापालक,जगन्निवास भगवान राम को ध्येय ,गेय और उपास्य रूप में प्रतिष्ठित करके भटकते हुए जनसमाज का मार्गदर्शन एवं अकल्पनीय हित किया|स्वामी रामानन्द महँ भक्त,योगी तथा उच्च कोटि के विद्वान थे|उन्होंने जातियों के भेद को मिटाकर रामभक्ति की रसधारा को प्रवाहित किया|उनका सरल मंत्र था -ॐ रामाय नमः ,किन्तु महात्मा तुलसीदास ने दो शब्दों के “राम” को ही महामंत्र बना दिया|स्वामी रामानन्द ने अनेक महान ग्रंथो की रचना की तथा वेदपुराणसम्मत धर्म-मार्ग को प्रशस्त किया|

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15 Comments on “राम का स्वरुपमाधुर्य”

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